Kavi KanakaAr
मुनि कनकाअर
अपभ्रंश भाषा साहित्य में मुनि कनकाअर का नाम भी बहुत आदर और सम्मान से लिया जाता है। यह अंत में दिगंबर मुनिराज हो गए थे और इनका नाम कनकामर प्रसिद्ध हुआ। इनके विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।इनका समय 12 वीं शताब्दी के अंत का माना गया है। मुनि कनकामर ने आसायई नगरी में जाकर अपने काव्य करकंडु चरिउ की रचना की। यह आसायई नगर वर्तमान में आसयखेडा उत्तर प्रदेश का माना जा सकता है। कवि कनकामर ने एक काव्य की रचना की जिसका नाम करकंडु चरिउ है। यह काव्य 10 संधियों में विभक्त है। इसमें करकंडु महाराज की कथा का वर्णन है। चरित्र नायक करकंडु के अतिरिक्त इस ग्रंथ में 9 अवांतर कथाएं भी मिलती हैं। इस ग्रंथ में पुण्य-पाप के उदय की विविधता का वर्णन किया गया है।